ऑर्डनेंस पैराशूट फैक्ट्री (ओपीएफ) की स्थापना वर्ष 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कानपुर के फूलबाग स्थित के.ई.एम. हॉल में की गई थी। उस समय यह केवल एक छोटी-सी इकाई थी, जिसका कार्य सैनिकों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले पैराशूट की मरम्मत करना था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस फैक्ट्री को स्थानांतरित करके इसके वर्तमान पते नेपियर रोड, कानपुर छावनी में स्थापित किया गया। इस प्रकार ओपीएफ एशिया की शुरुआती पैराशूट निर्माण इकाइयों में से एक बनी और भारत की आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।
साठ का दशक ओपीएफ के लिए विस्तार का काल रहा। 1962 के चीन युद्ध ने सप्लाई ड्रॉप पैराशूट की आवश्यकता को सामने रखा, और ओपीएफ ने सैनिकों के लिए सप्लाई ड्रॉप पैराशूट और सैन्य वर्दियाँ बनाना शुरू किया। वर्ष 1970 तक ओपीएफ ने बड़े पैमाने पर पर्सनल पैराशूट (PTR-M और PTR-R मॉडल) का उत्पादन शुरू कर दिया था। इसके तुरंत बाद, 1971 के भारत-पाक युद्ध की तैयारी के दौरान, फैक्ट्री ने अपने उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाते हुए कानपुर-Meerut ब्रिज के लिए फ्लोट्स और फुलाने वाले नावों (Inflatable Boats) का निर्माण किया। इसने भारतीय सेना को नदी पार करने और त्वरित तैनाती में बड़ी मदद दी।
आगे के दशकों में, ओपीएफ ने लगातार अपने उत्पादों में विविधता लाई और आधुनिकीकरण किया। फैक्ट्री ने फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए ब्रेक पैराशूट, पायलटों के लिए इजेक्शन सीट पैराशूट, गोला-बारूद गिराने वाले पैराशूट और रात को रोशनी देने वाले पैराशूट बनाना शुरू किया। इसकी कार्यकुशलता को मान्यता देते हुए इसे 1984 और 1989 में ऑर्डनेंस फैक्ट्री दक्षता पुरस्कार भी मिले। वर्ष 1996 में इसे ISO-9001 प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुरूप साबित हुई।
सन् 2000 के बाद ओपीएफ ने और भी उन्नत तकनीकों पर काम शुरू किया। इसमें विशेष बलों के लिए कॉम्बैट फ्रीफॉल पैराशूट, बड़े कार्गो के लिए एरियल डिलीवरी सिस्टम, और वायुसेना के लिए रेस्क्यू एवं ब्रेक पैराशूट शामिल हैं। वर्ष 2023 में इस फैक्ट्री को AS9100D प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ, जो कि एयरोस्पेस क्वॉलिटी का वैश्विक मानक है। इसके बाद ओपीएफ के उत्पाद केवल रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि नागरिक उड्डयन, अंतरिक्ष और आपदा प्रबंधन में भी उपयोग की संभावना बढ़ गई।
प्रशासनिक रूप से ओपीएफ लंबे समय तक ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) के अधीन रहा। लेकिन वर्ष 2021 में सरकार द्वारा किए गए रक्षा क्षेत्र के कॉरपोरेटाइजेशन सुधार के तहत इसे ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड (GIL) के अंतर्गत कर दिया गया। आज यह GIL की एकमात्र उत्पादन इकाई है और भारतीय सेनाओं को पैराशूट, फुलाने योग्य उपकरण और एरियल डिलीवरी सिस्टम उपलब्ध कराती है।
पिछले 80 वर्षों से भी अधिक समय में ओपीएफ ने भारत की सभी बड़ी सैन्य आवश्यकताओं और युद्धों में योगदान दिया है—चाहे वह 1962 का चीन युद्ध हो, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध हों या फिर कारगिल युद्ध। एक साधारण मरम्मत इकाई से शुरुआत करके यह फैक्ट्री आज भारत की रणनीतिक रक्षा उत्पादन क्षमता की रीढ़ बन चुकी है। इसका इतिहास न केवल भारतीय सेना की बदलती ज़रूरतों को दर्शाता है बल्कि भारत की आत्मनिर्भर रक्षा तकनीक की दिशा में बढ़ते कदमों का भी प्रमाण है।